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Wednesday 26 September 2012

जानिए, भगवान श्रीगणेश के प्रमुख गणों के नाम

भगवान गणेशजी का उल्लेख ऋग्वेद के एक मंत्र (2-23-1) से मिलता है। चाहे कोई सा अनुष्ठान हो, इस मंत्र का जाप तो होता ही है...गणनां त्वा गणति हवामहे..। इस मंत्र में ब्रह्मणस्पति शब्द आया है। यह बृहस्पति देव के लिए प्रयुक्त हुआ है। बृहस्पति देव बुद्धि और ज्ञान के देव हैं। इसलिए गणपति देव को भी बुद्धि और विवेक का देव माना गया है। किसी भी कार्य की सिद्धि बिना बुद्धि और विवेक के नहीं हो सकती। इसलिए हर कार्य की सिद्धि के लिए बृहस्पतिदेव के प्रतीकात्मक रूप में गणेशजी की पूजा होती है।

गणेश पुराण में गणेशजी के अनेकानेक रूप कहे गए हैं। सतयुग में कश्यप ऋषि पुत्र के रूप में वह विनायक हुए और सिंह पर सवार होकर देवातंक -निरांतक का वध किया। त्रेता में मयूरेश्वर के रूप में वह अवतरित हुए।

धर्म शास्त्रों में भगवान गणेश के 21 गण बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं- गजास्य, विघ्नराज, लंबोदर, शिवात्मज, वक्रतुंड, शूर्पकर्ण, कुब्ज, विनायक, विघ्ननाश, वामन, विकट, सर्वदैवत, सर्वाॢतनाशी, विघ्नहर्ता, ध्रूमक, सर्वदेवाधिदेव, एकदंत, कृष्णपिंड्:ग, भालचंद्र, गणेश्वर और गणप। ये 21 गण हैं और गणेशजी की पूजा के भी 21 ही विधान हैं।

मूषक (चूहा) भगवान गणेश का वाहन है। गणेश का स्वरूप जितना विचित्र है उतना ही अजीब उनका वाहन है। शिवपुराण में प्रसंग आता है कि गणेश ने मूषक पर सवार होकर ही अपने माता-पिता की परिक्रमा की। कहां विशालकाय गणेश और कहां चूहे का छोटा-सा शरीर, कहीं कोई तालमेल ही नहीं। पुराण कहते हैं-

मूषकोत्तममारुह्यï देवासुरमहाहवे।

योद्धुकामं महाबाहुं वन्देऽहं गणनायकम्॥

पद्मपुराण, सृष्टिखंड 66/4

भावार्थ- उत्तम मूषक पर विराजमान देव-असुरों में श्रेष्ठ तथा युद्ध में महाबलशाली गणों के अधिपति श्रीगणेश को प्रणाम है।

भगवान गणेश के वाहन मूषक के बारे में कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं। उसी के अनुसार गजमुखासुर नामक दैत्य ने अपने बाहुबल से देवताओं को बहुत परेशान कर दिया। सभी देवता एकत्रित होकर भगवान गणेश के पास पहुंचे। तब भगवान श्रीगणेश ने उन्हें गजमुखासुर से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिलाया। तब श्रीगणेश का गजमुखासुर दैत्य से भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में श्रीगणेश का एक दांत टूट गया। तब क्रोधित होकर श्रीगणेश ने टूटे दांत से गजमुखासुर पर ऐसा प्रहार किया कि वह घबराकर चूहा बनकर भागा लेकिन गणेशजी ने उसे पकड़ लिया। मृत्यु के भय से वह क्षमायाचना करने लगा। तब श्रीगणेश ने मूषक रूप में ही उसे अपना वाहन बना लिया।

गणेशोत्सव: इस गणेश मंत्र से होगी तरक्की और मिलेगा लाभ


व्यवसाय में बाधा या नौकरी में तरक्की न होना किसी न किसी रूप में हर व्यक्ति को बैचेन और विचलित करती है, जो निजी जिंदगी से लेकर परिवार को भी प्रभावित करती है। इस परेशानियों से बचने के लिए श्रीगणेश की उपासना की उत्तम मानी गई है। यदि नीचे लिखे मंत्र का विधि-विधान से प्रतिदिन पूजन किया जाए तो आपकी हर समस्या का निदान तुरंत हो जाएगा।

मंत्र

वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ:

निर्विघ्र कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा



भगवान गणेश को 108 पीले फूल एक-एक करके चढ़ाएं। हर बार इस मंत्र का उच्चारण करें। यह मंत्र निश्चित रूप से आपके व्यापार में सफलता और जॉब में प्रमोशन की कामना पूरी करेगा।

कुंडली में मंगल के EFFECTS से व्यक्ति हो सकता है कामुक


मंगल ग्रह को ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रहों का सेनापति माना गया है। इसी वजह से इसका प्रभाव भी काफी अधिक होता है। मंगल किसी भी व्यक्ति का स्वभाव पूरी तरह प्रभावित करता है। कुंडली में मंगल किस घर में स्थित है उसके अनुसार क्या फल रहते हैं जानिए...

प्रथम भाव में मंगल हो तो...

पत्रिका में मंगल प्रथम भाव में हो तो वह व्यक्ति क्रूर, साहसी, मूढ़, अल्पायु, अभिमानी, शूर, सुंदररूप वाला और चंचल हो सकता है।

द्वितीय भाव में मंगल हो तो...

ऐसा व्यक्ति निर्धन, कुरूप वाला, नीच लोगों के साथ रहने वाला होता है। वह व्यक्ति विद्याहीन अथवा कम बुद्धि वाला होता है जिसकी कुंडली के द्वितीय भाव में मंगल हो।

तृतीय भाव में मंगल हो तो...

पत्रिका के तृतीय भाव में मंगल हो तो वह व्यक्ति अजेय, भ्रातृहीन, सभी गुणों वाला प्रसिद्ध होता है।

चतुर्थ भाव में मंगल हो तो...

किसी भी व्यक्ति की कुंडली में मंगल चौथो घर में हो तो वह घर, वस्त्र और भाई-बंधु से हीन, वाहन रहित, दुखी होता है।

पंचम भाव में मंगल हो तो...

पांचवे भाव में मंगल होने पर वह व्यक्ति सुख, धन और पुत्र से हीन, चंचल बुद्धि, चुगलखोर, बुरे मन का और अशांत होता है।

छठे भाव में मंगल हो तो...

छठे भाव में मंगल हो तो वह व्यक्ति अतिकामी, सुंदर, बलवान, बंधुओं में श्रेष्ठ और समाज में प्रतिष्ठा पाने वाले होता है।

सप्तम भाव में मंगल हो तो...

जन्मकुंडली में सप्तम भाव में मंगल हो तो वह व्यक्ति रोगी, गलत कार्य करने वाला, दुखी, पापी, निर्धन और पतले शरीर वाला होता है।

अष्टम भाव में मंगल हो तो...

यदि कुंडली के अष्टम भाव में मंगल हो तो ऐसा व्यक्ति अल्पायु, कुरूप, दुखी और निर्धन होता है।

नवम भाव में मंगल हो तो...

जन्मकुंडली में नवम भाव में मंगल होने पर व्यक्ति कार्य करने में अक्षम, हिंसक, धर्महीन, पापी फिर भी सम्मान प्राप्त करने वाला होता है।

दशम भाव में मंगल हो तो...

कुंडली के दसवें घर में मंगल हो तो व्यक्ति सभी कार्य करने में दक्ष, अजेय, श्रेष्ठ पुरुष, पुत्र सुख प्राप्त करने वाला होता है।

एकादश भाव में मंगल हो तो...

कुंडली के ग्यारवें भाव में मंगल व्यक्ति को गुणी, सुखी, धनवान, पुत्रवान और सुखी बनाता है।

द्वादश भाव में मंगल हो तो...

कुंडली के बाहरवें भाव में मंगल हो तो वह व्यक्ति आंखों का रोगी, चुगलखोर, क्रूर होता है। ऐसा व्यक्ति के जीवन में जेल भोगने के भी योग बन सकते हैं।

ध्यान रहे मंगल के प्रभावों पर विचार करते समय कुंडली के अन्य ग्रहों की स्थिति भी विचारणीय है। सभी ग्रहों की स्थिति भी अध्ययन करनी चाहिए। कुंडली के लग्न और ग्रहों की स्थिति से यहां बताए गए प्रभाव बदल भी सकते हैं।

Sunday 16 September 2012

MANTRA FOR LIFE - U CAN MAKE IT EASY: विदेश यात्रा कराने वाला अनुभूत मन्त्र     बहुत प...

MANTRA FOR LIFE - U CAN MAKE IT EASY: विदेश यात्रा कराने वाला अनुभूत मन्त्र


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: विदेश यात्रा कराने वाला अनुभूत मन्त्र     बहुत प्रयास के उपरान्त भी विदेश में नौकरी न लग रही हो या व्यापारिक लाभ नहीं हो पा रहा ह...